1967 के बाद से भारत-चीन सीमा पर एक भी गोली नहीं चली, 1986 के 27 साल बाद 2013 से फिर होने लगे विवाद
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एसएल नरसिम्हन, चीन से जुड़े मामलों के डिफेंस एक्सपर्ट हैं, वह नेशनल सिक्योरिटी एडवायजरी बोर्ड के मेंबर और सेंटर फॉर कंटेमपररी चाइना स्टडीज के डायरेक्टर जनरल भी हैं।
नई दिल्ली. 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध से लेकर 2013 तक भारत-चीन सीमा पर सिर्फ दो ही बड़ी घटनाएं घटीं थी। एक 1967 में नाथुला में और एक 1986 में समदोरांग में। 27 साल बाद 2013 में भारत और चीन की सेना ने दौलत बेग ओल्डी सेक्टर और एक साल बाद चुमार में एक दूसरे को घूरकर देखा था। फिर 2017 में डोकलाम वाली घटना हुई। डोकलाम वाली घटना के दौरान ही पैंगॉन्ग लेक में दोनों सेनाओं के बीच हुई झड़प के दौरान स्थति पथराव तक की बनी थी।
भारत-चीन सीमा के कई इलाकों को दोनों पक्षों ने विवादास्पद और संवेदनशील माना है। और यहीं झड़प होती रही है। 2007 से सिक्किम में कुछ मसले सामने आने लगे हैं। चीनी सेना ने नवंबर 2007 में जनरल एरिया डोकाला में अस्थाई बंकर तोड़ डाले थे। इसके बाद नॉर्थ सिक्किम का एक छोटा सा ‘फिंगर एरिया’ दोनों सेनाओं के लिए गले की हड्डी बन गया।
डोकलाम मामले के बाद ही वुहान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग के बीच मुलाकात हुई। इस मुलाकात से द्विपक्षीय रिश्ते थोड़े शांत हुए और सीमा पर तनाव भी कम ही हुआ। 2019 में मामलापुरम समिट हुई। दोनों बैठकों से संबंध सुधरने की उम्मीद की गई और यह बहुत हद तक कामयाब भी रही।
यह साल दोनों देशों के बीच डिप्लोमेटिक संबंध स्थापित होने का 70वां साल है। इसका जश्न मनाने 70 इवेंट्स प्लान किए गए थे। अफसोस कोविड 19 ने उन सभी सेलिब्रेशन्स पर पानी फेर दिया है। हालांकि, जितने हो सकते हैं वह होंगे।
जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश में बदलना चीन को रास नहीं आया
भारत ने जम्मू कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश में बदला है, जो भारत का अंदरूनी मामला है। लेकिन ये चीन को सही नहीं लगा। ईस्टर्न लद्दाख पर अपना दावा करनेवाला चीन इसे अपने लिए खतरा मान रहा है। साथ ही पाकिस्तान से नजदीकियों के चलते चीन की यह मजबूरी है कि वह जम्मू कश्मीर के मसले को यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में बार-बार उठाए। चीन की इन्हीं हरकतों ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्तों की रफ्तार को प्रभावित किया है। हालांकि इसके चलते कोई बड़े प्रतिकूल प्रभाव महसूस नहीं हुए।
जब सबकुछ ठीक ही नजर आ रहा था, तब हाल ही में घटी कुछ विवादित घटनाओं ने भारत और चीन के रिश्तों पर सवाल खड़ा किया है। हाल ही में भारतीय सेना और पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी के सैनिकों के बीच नॉर्थ सिक्किम के नाकूला में हाथापाई हुई है। घटना के दौरान दोनों ही ओर के सैनिकों को चोट भी आई हैं। इसके बाद लद्दाख में एक और झड़प की बात सामने आई। 12 मई 2020 को खबर ये भी आई कि भारतीय वायुसेना ने अपने लड़ाकू विमान एक हफ्ते पहले लद्दाख भेजे थे। क्योंकि सीमा पर चीन की वायुसेना के हेलिकॉप्टर नजर आए थे।इन सब रिपोर्ट्स की मानें तो भारत और चीन के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। लेकिन किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले 5 बातों पर ध्यान देना होगा...
पहली बात - भारत और चीन की सीमा से जुड़े कई अनसुलझे सवाल हैं। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल 1962 के युद्ध के बाद अस्तित्व में आई। लेकिन जमीन पर अब तक उसकी हदबंदी नहीं हुई है। यही वजह है कि दोनों देशों की सरहद को लेकर अपनी-अपनी धारणाएं हैं। इसी के चलते ऐसे इलाके पनपे हैं, जिन पर दोनों देश अपना दावा करते हैं। नतीजतनकई विवादित और संवेनशील इलाके बन गए हैं। जब भी दोनों देशों की पैट्रोलिंग पार्टी इन विवादित इलाके में जाती है, तो झड़प हो जाती है।
दूसरी बात - मई से सितंबर के बीच हर साल लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल वाले इलाकों में मौसम बेहतर रहता है। इसी दौरान दोनों देशों की सेना पैट्रोलिंग बढ़ा देती हैं। इसीलिए इस मौसम में विवाद ज्यादा होते हैं। यही वजह है कि सर्दियों में भारत और चीन के बीच विवाद सबसे कम होते हैं।
तीसरी बात - 1967 से लेकर आज तक भारत और चीन सीमा पर एक भी गोली नहीं चली है। और जब भी झड़प या विवाद होते हैं तो दोनों पक्षों के स्थानीय कमांडर अपने स्तर पर इसे सुलझा लेते हैं।
चौथी बात - भारत और चीन के बीच सरहद पर शांति बनाए रखने को लेकर तमाम एग्रीमेंट हुए हैं। इन्हीं एग्रीमेंट्स के आधार पर कई स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर पर दोनों ओर से सहमति बनी है। ताकि विवाद न बढ़ें और जब हो तो कैसे सुलझाएं।
पांचवी बात - दोनों देशों के बीच नाथुला, बुमला, किबिथू और केपान्गला में बॉर्डर पर्सनल मीटिंग होती है। इन मीटिंग्स में जो दिक्कतें और विवाद हैं वह सुलझाए जातेहैं। इन मीटिंग्स के बीच अगर कोई बात हो जाए तो उसके लिए फ्लैग मीटिंग कर सकते हैं।
भारत और चीन के बीच 3488 किमी लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल है। यह दुनिया की सबसे लंबी अनसुलझी सीमा है। इस सीमा का लंबा इलाका दुर्गम है और दोनों सेनाएं उसे नियंत्रित करने का प्रयास करती हैं। इसके लिए एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) होती है। जब भी कोई एक पक्ष एसओपी को नहीं मानता जिसपर सहमति बनी थी तो विवाद होता है। और ज्यादातर इस एसओपी को नहीं माननेवाला चीन ही होता है।
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर जो होता है, उन परिस्थितियों से निपटने की व्यवस्थाओं को देखने के बाद, ये देखना होगा कि आखिर वहां क्या करने की जरूरत है?
पहला - दोनों सेनाओं को स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) का सख्ती से पालन करना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि विवाद तुरंत सुलझ जाए और बढे़ ना।
दूसरा - लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को जितनी जल्दी हो सके स्पष्ट किया जाना चाहिए। इसे लेकर 20 साल पहले कोशिश की गई थी। दोनों देशों ने एलएसी को लेकर अपनी धारणाओं के मुताबिक सेंट्रल सेक्टर के नक्शे एक्सचेंज किए थे। जब वेस्टर्न सेक्टर के नक्शे एक्सचेंज करने की बात आई तो चीन ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया। यदि ऐसा हो पाता तो दोनों पक्षों की सीमा को लेकर जो धारणा है वह पता चलती और उसके मुताबिक ग्राउंड पर उसकी हथबंदी की जा सकती। इससे विवाद कम हो जाते।
तीसरा - लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर होनी वाली घटनाओं को लेकर संवेनशीलता में कमी आना चाहिए। जैसे ही कोई मामला सामने आता है उसे लेकर प्रतिक्रिया नियंत्रण से बाहर हो जाती है। कई बार वहां क्या हुआ उसकी असलियत जाने बगैर कुछ भी समझ लिया जाता है।
चौथा - तकनीक के जरिए सीमा पर सर्विलांस बढ़ाना चाहिए। इससे ह्युमन इंटरेक्शन कम होगा और विवाद भी कम होंगे। टेक्नोलॉजीके जरिए एलएसी के नजदीक सड़क और ट्रैक के निर्माण को लेकर पर नजर रखी जा सकेगी।
पांचवा - दोनों देशों के नेता और सरकार जानती और समझती है कि किसी भी मतलब से हुआ विवाद हर एक को बुरी तरह प्रभावित करेगा। जरूरत है कि दोनों देश और उनकी सेनाएं सरहद पर शांति कायम रखना सुनिश्चित करे।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
0 Comments