15 मई की सुबह 4.30 बजे बद्रीनाथ धाम के कपाट खुल जाएंगे। लॉकडाउन की वजह से कपाट खोलने की तारीख बदली गई है। पहले 30 अप्रैल को कपाट खुलने थे। कोरोना वायरस के चलते पहली बार केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तारीखों में 15 दिन से ज्यादा का अंतर रहा है। केदारनाथ के कपाट 29 अप्रैल को खुल चुके हैं। बद्रीनाथ धाम के कपाट रावल द्वारा ही खोले जाते हैं। बुधवार, 13 मई को जोशीमठ से रावल शंकराचार्य की गद्दी लेकर निकलेंगे। इनके साथ ही धर्माधिकारी और अन्य लोग शमिल रहेंगे। दैनिक भास्कर ने बद्रीनाथ धाम से जुड़ी प्राचीन परंपराओं के बारे में यहां के रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी से बात की है।

केरल से कितने दिनों में पहुंचे उत्तराखंड? क्वारेंटाइन का समय कैसे गुजरा?

नेशनल लॉकडाउन है। ऐसी स्थिति में केरल से उत्तराखंड पहुंचने में इन्हें तीन दिन लगे और काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। केरल से उत्तराखंड के ऋषिकेश 20 अप्रैल को पहुंच गए थे। इसके बाद उन्हें वहीं क्वारेंटाइन किया गया था। क्वारेंटाइन पूरा करने के बाद वे 9 मई को जोशी मठ पहुंचे। क्वारेंटाइन में तीन समय भगवान की पूजा और यहां स्थित शिवानंद आश्रम में अध्ययनमें समय गुजारा।

पहली बार कपाट खुलने की तिथि बदली गई, क्या इसका कोई तनाव रहा?

हर साल कपाट खोलने और बंद करने के लिए तीन-तीन तिथियां तय की जाती है। प्राकृतिक आपदाओं की वजह से या किसी अन्य कारण से तय तिथि पर कपाट न खुल पाए या कपाट बंद न हो सके तो अगली तारीख भी पहले से ही तय रहती है। इसलिए, ऐसा कोई मानसिक दबाव या तनाव नहीं था। हम इसके लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

क्या लॉकडाउन के कारण कोई परंपरा ऐसी है, जो इस बार नहीं हो पाएगी?

इस साल भक्तों की भीड़ नहीं होगी।बाकी वो सब होगा, जो हमेशा होता आया है। कोई परंपरा नहीं टूटेगी। हम 13 मई को जोशी मठ से शंकराचार्य की गद्दी लेकर प्रस्थान करेंगे। धर्माधिकारी, कुछ अधिकारी, शासन-प्रशासन के लोग भी साथ रहेंगे। इसी दिन पांडुकेश्वर पहुंचेंगे। यहां रात रुकेंगे और अगले दिन भगवान कुबेर और उद्धवजी के साथ 14 मई को बद्रीनाथ पहुंचेंगे। 15 मई को सुबह 4.30 बजे गणेशजी की पूजा के बाद कपाट खोले जाएंगे। कपाट खुलने पर बद्रीनाथ के साथ ही भगवान धनवतंरि की भी विशेष पूजा की जाएगी। धनवंतरि आयुर्वेद के देवता हैं। दुनियाभर से इस महामारी को खत्म करने की प्रार्थना की जाएगी। सिर्फ रावल ही पूजा करते हैं। मंदिर की कुछ अन्य क्रियाएं करने की जिम्मेदारी डिमरी गांव के लोगों की होती है।

कपाट बंद होने के बाद कैसा होता है जीवन?

2014 से रावल पद पर हूं। बद्रीनाथ कपाट बंद होने के बाद हम अपने केरल स्थित अपने गांव राघवपुरम् पहुंच जाते हैं। वहां अपना सामान्य जीवन जीते हैं। इसके अलावा नियमित रूप से तीन समय की पूजा-पाठ रोज करते हैं, तीर्थ यात्राएं करते हैं। जब भी बद्रीनाथ से संबंधित कोई आयोजन होता है तो वे वहां जाते हैं।

कैसे नियुक्त होते हैं रावल?

शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार ही रावल नियुक्त किए जाते हैं। केरल स्थित राघवपुरम गांव में नंबूदरी संप्रदाय के लोग रहते हैं। इसी गांव से ही रावल नियुक्त किए जाते हैं। इसके लिए इंटरव्यू होता है यानी शास्त्रार्थ किया जाता है। योग्य व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त किया जाता है। रावल आजीवन ब्रह्मचारी रहते हैं। केदारनाथ और बद्रीनाथ के रावल में बहुत अंतर है। केदारनाथ के लिंगम रावल होते हैं और बद्रीनाथ में नंबूदरी रावल रहते हैं। इन दोनों धामों के रावल की परंपराएं अलग-अलग हैं।

बद्रीनाथ का तिल के तेल से अभिषेक होता है, ये तेल कहां से आता है?

बद्रीनाथ का तिल के तेल से अभिषेक होता है और ये तेल यहां टिहरी राज परिवार से आता है। टिहरी राज परिवार के आराध्य बद्रीनाथ हैं। मंदिर की एक चाबी राज परिवार के पास भी होती है। जब कपाट खुलेंगे तो राज परिवार से भी कोई सदस्य यहां अवश्य उपस्थित रहेगा। रावल राज परिवार के प्रतिनिधि के रूप में भगवान की पूजा करते हैं। यहां परशुराम की परंपरा के अनुसार पूजा की जाती है।

कपाट बंद होने के बाद कौन करता हैं बद्रीनाथजी की पूजा?

बद्रीनाथजी में पूजा से जुड़ी एक विशेष परंपरा है। कपाट खुलने पर यहां नर पूजा करते हैं और बंद होने पर नारदजी पूजा करते हैं। कपाट खुलने के बाद नर यानी रावल यहां पूजा करते हैं। कपाट खुलने से पहले पांडुकेश्वर से बद्रीनाथ जाते समय रास्ते में लीलाढुंगी नाम की जगह है। यहां नारदजी का मंदिर है। यहां नारदजी को प्रणाम करके बद्रीनाथजी की पूजा करने का प्रभार रावल ग्रहण करते हैं। यहां विशेष पूजा भी की जाती है।

बद्रीनाथ के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल।

धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल से बात....

बद्रीनाथ में केरल के पुजारी क्यों?

बद्रीनाथ धाम के रावल आदि गुरु शंकराचार्य के कुंटुंब से ही होते हैं। शंकराचार्य ने चारों धामों में पुजारियों से जुड़ी विशेष व्यवस्था बनाई थी। बद्रीनाथ धाम में केरल के नंबूदरी पुजारी ही पूजा करते हैं। इन्हें ही रावल कहा जाता है। शंकराचार्य ने चारों धामों में विपरीत दिशाओं से पुजारी नियुक्त करने की व्यवस्था की थी। ये व्यवस्था अब भी जारी है। जैसे बद्रीनाथ में साउथ के पुजारी होते हैं और रामेश्वरम् में उत्तर के। जगन्नाथ पुरी और द्वारिका धाम में भी ऐसा ही है। दरअसल, शंकराचार्य ने ये व्यवस्था पूरे भारत को एक साथ जोड़ने के लिए शुरु की थी।

रावल और धर्माधिकारी के दायित्व क्या-क्या हैं?

रावल और धर्माधिकारी के दायित्व अलग-अलग होते हैं। रावल यहां के टिहरी नरेश के प्रतिनिधि होते हैं। सिर्फ रावल को ही बद्रीनाथजी की प्रतिमा स्पर्श करने का अधिकार होता है। रावल ही यहां पूजा कर सकते हैं। रावल के निर्देशों के अनुसार ही मंदिर में कार्यक्रम होते हैं। तीज-त्यौहारों पर यहां होने वाले सभी तरह के विशेष धार्मिक आयोजन धर्माधिकारी द्वारा पूर्ण कराए जाते हैं।

पहली बार बदली गई है कपाट खुलने की तिथि, इस संबंध में आपके विचार क्या हैं?

धर्माधिकारी उनियाल के मुताबिक उनके जीवन में ऐसा पहली हुआ है, जब बद्रीनाथ के कपाट खुलने की तिथि में बदलाव हुआ है। बद्रीनाथ क्षेत्र में अधिकतर समय प्रतिकूल वातावरण रहता है, ऐसी स्थिति में हर साल यहां कपाट खुलने और बंद होने के तीन-तीन तारीखें तय होती है। अगर निर्धारित तिथि पर कोई परेशानी आती है तो अगली तारीख पर कपाट खोले जा सकते हैं या बंद किए जा सकते हैं। जैसे इस साल कोरोना वायरस की वजह से तिथि आगे बढ़ाई गई है।



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बद्रीनाथ के रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी।