अमेरिकी कमीशन ने कहा- कोरोना के दौरान भारत में मुस्लिमों को बलि का बकरा बनाया गया; इसी ने भारत को धार्मिक भेदभाव करने वाले देशों की लिस्ट में डालने का सुझाव भी दिया था
अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने बुधवार को एक ट्वीट किया। इसमें कहा गया कि, "साल 2019 के दौरान भारत में धार्मिक आजादी का ग्राफ बुरी तरह नीचे गिरा। इस साल कोरोनावायरस महामारी के दौरान भी यह प्रवृत्ति जारी रही और मुस्लिमों को बलि का बकरा बनाया गया। इन आधारों पर यूएससीआईआरएफ अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट की धार्मिक आजादी के लिए चिंताजनक स्थिति वाले देशों की सूची में भारत को भी डालनेका सुझाव देता है।"
अमेरिकी कमीशन का यह ट्वीट 13 मई (बुधवार) का है लेकिन दुनियाभर में धार्मिक आजादी पर वह अपनी रिपोर्ट 28 अप्रैल को ही अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट को सौंप चुका है। इस रिपोर्ट में ही कमीशन ने भारत को 2019 और 2020 के घटनाक्रम के आधार पर विशेष चिंता के विषय वाले देशों (सीपीसी) की लिस्ट में डाला था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने एक दिन बाद ही (29 अप्रैल) इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा था कि हम इस आयोग को एक विशेष सोच के साथ काम करने वाला संगठन मानते हैं और इसकी रिपोर्ट में कही गई बातों कीपरवाह नहीं करते।
Religious freedom in #India during 2019 took a drastic turn downward, a trend that has unfortunately been demonstrated by the scapegoating of Muslims during the #COVID19 crisis. As a result, USCIRF recommends India for #CPC designation.
— USCIRF (@USCIRF) May 12, 2020
Read more: https://t.co/95B9IUsHNv
28 अप्रैल की रिपोर्ट में सीएए, एनआरसी, धर्मांतरण विरोधी कानून, मॉब लिंचिंग, जम्मू-कश्मीर से विशेष अधिकार छिनने, अयोध्या में राम मंदिर सुनवाई के दौरान भारत सरकार के एकतरफा रवैये जैसी कई चीजों के आधार पर भारत को धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला देश बताया गया था। अब ताजा ट्वीट में कोरोना फैलाने के बहाने मुस्लिमों को अलग-थलग करने की बात जोड़ी गई है।
दरअसल, कोरोना के चलते 25 मार्च को भारत में लॉकडाउन हुआ और 29 मार्च को दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में लगे मरकज से कोरोना का पहला केस मिला। मरकज में 2 हजार से ज्यादा लोग थे, जो लॉकडाउन के कारण बाहर नहीं निकल पाए। इनमें से कई लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इस केस के बाद कुछ मीडिया चैनलों और सोशल मीडिया पर मरकज को कोरोना का केन्द्र बताया जाने लगा।
खुद केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने एक बयान में कहा था कि एक घटना के कारण कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ गई। केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने जमातियों पर देशभर में सक्रमण फैलाने का आरोप लगाया और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि तबलीगी जमात ने जानबुझकर कोरोना फैलाया। भाजपा नेताओं की यह फेहरिस्त लंबी है।
देशभर की भाजपा शासित राज्य सरकारों ने भी अपने-अपने राज्यों में कोरोना फैलने का ठिकरा जमातियों पर ही फोड़ा। हिमाचल प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदेल ने तबलीगी जमातियों को मानव बम कहा तो कर्नाटक से भाजपा सांसद शोभा करंडलाजे ने बेलागावी के एक हॉस्पिटल में जमातियों पर थूकने और अश्लील इशारे करने के आरोप लगाए, हालांकि बाद में जिला डेप्युटी कमिश्नर ने इन आरोपों को गलत बताया।
70 people from Belagavi attended #NizamuddinMarkaj, among thm 8 tested +ve, rest of the results yet to come.
— Shobha Karandlaje (@ShobhaBJP) April 6, 2020
In #Quarantine wards #Tablighis are misbehaving with our #HealthcareHeroes, dancing &spitting everywhere.
Nation wants to know the intentions of #TablighiJamaat!! pic.twitter.com/07GojoiycM
भाजपा नेताओं के बयानों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट वायरल होने लगे, जिनमें भारत में कोरोना फैलाने के लिए जमातियों की फौज खड़ी करने की बात कही जा रही थी। विदिशा के एक मानसिक रूप से अस्थिर शख्स का फलों में थूक लगाने वाला वीडिया सबसे ज्यादा वायरल हुआ। हालांकि यह एक पुराना वीडियो था। इसे यह कहकर वायरल किया गया कि मुस्लिम लोग देश में कोरोना फैलाने के लिए थूक लगाकर फल-सब्जी बेच रहे हैं।
इस तरह के कई पोस्ट सोशल मीडिया पर चलते रहे। कुछ न्यूज चैनलों में भी रात-दिन यही दिखाया जाने लगा। असर यह हुआ कि देश के कई बड़े-छोटे शहरों से फल-सब्जी बेचने वाले मुस्लिमों को कॉलोनियों में न घुसने देने की खबरें आने लगीं। कई गांवों में मुस्लिम व्यापारियों को न आने देने के पोस्टर भी लगे। कई गांव और कस्बों से ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि मुस्लिमों को न सामान दिया जा रहा है और न ही उन्हें खेतों में मजदूरी के लिए बुलाया जा रहा है। सरकार की बातें, सोशल मीडिया का फेक कंटेंट और न्यूज चैनलों के एजेंडे कुछ इस तरह लोगों के दिमाग में बैठ गए कि मंडियों में ठेले लगाने वाले मुस्लिमों को भी पीटकर भगाया जाने लगा।
केस 1: दिल्ली के शास्त्री नगर इलाके का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था, इसमें 15-20 लोग फल-सब्जी बेचने वाले मुस्लिमों को कॉलोनी में न घुसने देने की बात कर रहे थे। इसी बीच जब दो मुस्लिम युवक फल लेकर इस कॉलोनी में पहुंचते हैं तो उन्हें भगा दिया जाता है। भास्कर के रिपोर्टर राहुल कोटियाल जब इस वायरल वीडियो की तहकीकात के लिए इस इलाके में पहुंचे तो यहां के लोगों ने माना था कि उन्होंने मुस्लिमों का कॉलोनी में आना बंद कर दिया है।
केस 2: मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के एक गांव में मुस्लिम व्यापारियों के प्रवेश को लेकर एक पोस्टर लगाया गया था। इसमें लिखा गया था कि मुस्लिम व्यापारियों का गांव में प्रवेश निषेध है।
केस 3: उत्तर-पश्चिम दिल्ली के हारेवली गांव में एक 22 वर्षीय महबूब अली को इसलिए पीटा गया क्योंकि वह मरकज से लौटा था। पिटाई के बाद युवक को हिंदू मंदिर में ले जाया गया और उसे हिंदू धर्म अपनाने के लिए कहा गया।
ये महज तीन केस हैं लेकिन पिछले डेढ़ महीने से भारत में कोरोना फैलाने के बहाने हो रहे मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारों के शोषण की खबरें लगातार आती रहीं हैं। अरुणाचल प्रदेश में मुस्लिम ट्रक चालकों को मारा गया। कर्नाटक के बिदारी और कडकोरप्पा गांवों में मुस्लिमों पर हुए हमले के वीडियो सामने आए। इन हमलों के वीडियो में हमलावरों का कहना था कि तुम्हीं लोग (मुसलमान) ये बीमारी फैला रहे हो। इसी तरह हरियाणा के गुरुग्राम में धनकोट गांव में मस्जिद पर हमला हुआ। देशभर से ऐसे केस लगातार आते रहे।
यूएससीआईआरएफ के प्रतिनिधी तो भारत में नहीं आते लेकिन इन्हीं रिपोर्ट्स के आधार पर उन्होंने ताजा ट्वीट किया है। खैर, यूएससीआईआरएफ के यह सुझाव अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट मानता है या नहीं ये तभी पता चलेगा जब इस साल के लिए सीपीसी की लिस्ट आएगी। मई के आखिरी में या जून के पहले सप्ताह में इसके आने की उम्मीद है। लेकिन अमिरिकी कमीशन के यह सुझाव भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को कितना नुकसान पहुंचाते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
2004 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब यूएससीआईआरएफ ने भारत को धार्मिक भेदभाव के लिए चिंताजनक स्थिति वाले देशों की सूची में शामिल करने का सुझावदिया है। 28 अप्रैल की रिपोर्ट में इस आयोग ने भारत समेत 14 देशों को सीपीसी लिस्ट में डालने का सुझाव दिया। इनमें 9 वे देश हैं जो पहले से ही इस लिस्ट में शामिल है- बर्मा, चीन, इरीट्रिया, ईरान, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान। अब इसमें 5 अन्य देश भारत, नाइजीरिया रूस, सीरिया और वियतनाम को भी शामिल करने का सुझाव है।
रिपोर्ट में भारत के लिए क्या कहा गया?
रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में भाजपा ने दोबारा सरकार में आने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी नीतियां बनाईं, जिनसे मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन हुआ। भारत सरकार ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा को छूट दी और खुद नेता लोग भड़काने वाले बयान देते रहे। रिपोर्ट में सीएए को मुस्लिम अधिकारों के हनन का सबसे बड़ा उदाहरण बताया गया। इसमें कहा गया कि भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने बाहर से आए प्रवासियों को दीमकबताया और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स को देशभर में लागू कर इन्हें बाहर निकालने की बात कही। लेकिन दूसरी ओर वे यह भी कहते रहे कि आसपास के 6 देशों से आए हिदू प्रवासियों को सीएए के द्वारा नागरिकता दी जाएगी, यानी बाहर निकलने वालों में केवल मुस्लिम होंगे।
रिपोर्ट में सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शनों को दबाने के लिए पुलिस और सरकार से जुड़े समुहों को भी हिंसा करने वालों के साथ मिला हुआ बताया गया। रिपोर्ट में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वह बयान भी शामिल किया गया जिसमें उन्होंने सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को बिरयानी के बदले बुलेट देने की बात कही थी। इन बयानों को उकसाने वाले बयान कहा गया। रिपोर्ट में झारखंड की मॉब लिंचिग की घटना का उल्लेख भी है, जिसमें तबरेज अंसारी नाम के शख्स को पीट-पीट कर मार डालने और उससे जयश्री राम के नारे बुलवाए गए थे।
रिपोर्टमें ईसाईयों पर भी पूरे साल में 328 हमलों का जिक्र है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जब सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए कानून के सख्ती से पालन का सुझाव दिया तो गृहमंत्री अमित शाह ने मौजूदा कानूनों को ही पर्याप्त बताया था। यहां तक कि गृहमंत्रालय के आदेश पर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के डेटा से भी लिंचिंग का डेटा हटवाने का आदेश दिया गया।
रिपोर्ट में फरवरी के आखिरी में दिल्ली में हुए दंगों का भी जिक्र है। इसमें कहा गया है कि तीन दिन तक चले दंगों को केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस रोकने में असफल रही और इसमें 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई, इनमें ज्यादातर मुस्लिम थे।
यूएससीआरआईएफ ने भारत के संदर्भ में अमेरिकी सरकार को क्या सुझाव दिया?
-
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी के नियमों के तहत भारत में अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों के उल्लंघन को देखते हुए देश को विशेष चिंताजनक स्थिति वाले देशों की सूची में डालें।
- भारत सरकार की उन एजेंसियों और अधिकारियों को अमेरिका आने पर पर प्रतिबंध लगाएं जो धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन कर रही हैं। अमेरिका में इनकी संपत्तियों को भी जब्त करने का सुझाव दिया गया है।
- भारत में अमेरिकी दूतावास और राजनयिक को हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में धार्मिक समुदायों, स्थानीय प्रशासन और पुलिस से मिलने के लिए कहा जाए। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए भारत में कानून का पालन करवाने वाली संस्थाओं के साथ अमेरिका अपनी साझेदारी बढ़ाए।
- मॉनिटरिंग और वार्निंग सिस्टम बनाने के लिए भारत में सिविल सोसाइटियों को फंड दें ताकि पुलिस की सहायता से भड़काऊ भाषण और उकसाने वाली घटनाओं को समय रहते रोका जा सके।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
0 Comments